Complete EVS in One Shot CTET Marathon

CTET EVS MARATHON आपके CTET प्रतियोगिता परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है । आप EVS की तैयारी से पेपर 1 में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते है । Environmental Studies CTET एवं सभी शिक्षक भर्ती परीक्षाओ में पूछे जाते है | पर्यावरण अध्ययन CTET, UPTET, REET, MP TET और अन्य शिक्षण परीक्षाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है |ईवीएस के नोट्स जो विभिन्न टीईटी परीक्षा के लिए तैयार हैं जो आपकी बेहतरीन तैयारी के लिए महत्वपूर्ण है | Environmental Studies (EVS) in One-Shot आपके परीक्षा में लिए काफी महत्वपूर्ण है | पर्यावरण अध्ययन के महत्वपुर्ण वन लाइनर प्रश्न उत्तर से आप परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं |

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पर्यावरण अध्ययन CTET, UPTET, REET, MP TET और अन्य शिक्षण परीक्षाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है |Environmental Studies से बहुविकल्पीय वस्तुनिष्ठ प्रारूप में कुल 30 प्रश्न पूछे जाते हैं। शिक्षक पात्रता परीक्षा जैसे की – CTET, UPTET, HPTET, PSTET,BPSC TET ,MPTET ,etc में पूछे जाते हैं | CTET EVS सिलेबस 2024 में इस खंड Environmental Studies से बहुविकल्पीय वस्तुनिष्ठ प्रारूप में कुल 30 प्रश्न पूछे जाते हैं। आप इस पोस्ट में पर्यावरण अध्ययन(EVS Pedagogy ) के महत्वपूर्ण क्वेश्चन और उनके उत्तर को देख पाएंगे | इसलिए Complete EVS in One Shot CTET Marathon इस पोस्ट के माध्यम से पूरा जरुर देखें |

EVS Marathon Class for CTET

EVS Marathon Class for CTET

परिवार क्या है ?

‘परिवार’ शब्द अंग्रेजी शब्द Family का हिन्दी रूपान्तरण है जिसमें माता-पिता, बच्चे आदि शामिल होते हैं । परिवार से ही बालक की प्रारम्भिक शिक्षा प्रारम्भ होती है। बालक परिवार के द्वारा ही प्रेम, सहयोग, अनुशासन आदि गुण सीखता है। समाज में परिवार अत्यधिक महत्त्वपूर्ण समूह है। मैकाइवर एवं पेज ने परिवार को परिभाषित करते हुए कहा है “परिवार पर्याप्त निश्चित यौन सम्बन्ध द्वारा परिभाषित एक ऐसा समूह है, जो बच्चों के जनन एवं पालन-पोषण की उचित व्यवस्था करता है।”

परिवार का वर्गीकरण कैसे होते है ?

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एकल परिवार इसमें पति-पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चे सम्मिलित होते हैं। ऐसे परिवार बढ़ती महँगाई और जनसंख्या के कारण अधिक प्रचलित हो रहे हैं।

संयुक्त परिवार ऐसे परिवार में माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई-बहन, पुत्रवधू एवं उनके बच्चे, दादा-दादी, चाचा-चाची आदि एक साथ संयुक्त रूप से घर में निवास करते हैं। इसमें आदर्श नागरिकों के गुणों का विकास होता है, सामाजिक सुरक्षा की भावना विकसित होती है, श्रम विभाजन की व्यापक सुविधा रहती है।

बालक का विकास कैसे होता है ?

परिवार ही वह प्रासंगिक स्थान है, जहाँ सर्वप्रथम बालक का समाजीकरण होता है। बालक के परिवार की सामाजिक स्थिति भी बालक के सामाजिक विकास को प्रभावित करती है।

बालक की नियमित दिनचर्या का प्रभाव उसके शारीरिक विकास पर पड़ता है और इसे नियमित करने की जिम्मेदारी भी परिवार की ही होती है।

शारीरिक विकास हेतु खेल एवं व्यायाम के लिए समुचित सुविधाएँ एवं समय उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी भी उसके परिवार की ही होती है।

बालक के भाषा विकास का भी महत्त्वपूर्ण योगदान होता है, जिसमें उसके परिवार की भूमिका सर्वाधिक अहम् होती है।

अच्छी आर्थिक स्थिति वाले परिवार में ही बालक को पौष्टिक भोजन, सही शिक्षा का वातावरण, खेल एवं मनोरंजन के अवसर आदि उपलब्ध होते हैं।

माता-पिता की शिक्षा का भी बालक के मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है।खेल का बालकों के विकास में योगदान खेल-कूद से बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास होता है ।

पौधे (Plants) पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तन्त्र के लिए अति आवश्यक क्यों है ?

मनुष्य तथा जीव-जन्तु भी अपने खाद्य पदार्थों का अधिकांश भाग पेड़-पौधों से ही प्राप्त करते हैं। पौधे के भाग एवं उनकी भूमिका भयः सभी पाँचों में जड़, तना, पत्ती, फल एवं फूल पाए जाते हैं, जबकि, कवर क (शैवाल) आदि में इस प्रकार की चीजें दिखाई नहीं देती हैं। जड़ पौधे का वह भाग है, जो प्रायः भूमि के अन्दर रहता है। जड़ (Root) दो प्रकार की होती हैं मूसला जड़ और झकड़ा जड़।

तना यह जड़ द्वारा अवशोषित जल व खनिज पदार्थ को पत्ती तथा पौधों के अन्य भागों में पहुँचाने का कार्य करती है।पौधों की पत्तियाँ, तनों व टहनियों के सहारे निकलती हैं।

पत्तियाँ (Leaves) मुख्य रूप से हरे रंग की होती है, जबकि कुछ पौधों की पत्तियाँ लाल, बैंगनी तथा पीले रंग की भी होती हैं।

फूल (Flower) नए पौधों के विकास में सहायता करते हैं, क्योकि फूल पौधों के प्रजनन अंग होते हैं।फूल के कई भाग होते हैं, जैसे-बाह्यदल, पंखुड़ियाँ, स्त्रीकेसर व पुंकेसर आदि।

फूलों में सबसे बड़ा फूल रफलेसिया तथा सबसे छोटा फूल वूलफिया है।

फूलों की घाटी चमोली, उत्तराखण्ड में अवस्थित है।

क्षेत्र के आधार पर पौधों का वर्गीकरण ?

जलोद्भिद् (Hydrophyte) ये पानी में पाए जाते हैं, जिनकी जड़ कम विकसित होती हैं। इनकी पत्तियाँ पतली व संकरी होती हैं जिस पर मोम की परत होती है। इसके उदाहरण हैं-कमल, हाइड्रिला, जललिली।

लवणो‌द्भिद् (Halophytes) इस प्रकार के पौधे दलदली क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन पौधों की जड़े जमीन से ऊपर निकली हुई होती है। साल्ट मार्स (Salt Marsh) इसका उदाहरण है।

समोद्भिद् (Mesophyte) ये पौधे खेती योग्य जमीन पर पाए जाते हैं। इनका तना ठोस और शाखा युक्त होता है। इसके उदाहरण है-मक्का, टमाटर, गेहूँ, धान आदि।

मरु‌द्भिद् (Xerophyte) ये पौधे मरुस्थलीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं इनकी पत्तियाँ छोटी-छोटी एवं जड़ें गहरी होती हैं। इन पौधों का तना गद्देदार एवं मोम की परत से ढका होता है। इसका उदाहरण नागफनी, एकासिया, यूफोबिया आदि।

जन्तु और जन्तु के वर्गीकरण ?

जन्तुओं का शारीरिक रचना, पोषण, आवास, स्वभाव के आधार पर कई प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है।शारीरिक रचना के आधार पर वर्गीकरण कशेरुकी जन्तु इसमें जन्तुओं की अस्थियों एवं उपास्थियों से बना कंकाल पाया जाता है, इसके उदाहरण हैं-गाय, भैंस, कुत्ता, मनुष्य इत्यादि। अकशेरुकी जन्तु इस वर्ग के जन्तुओं के शरीर में अस्थियाँ एवं उपास्थियों का कंकाल नहीं पाया जाता है, इसके उदाहरण हैं- केंचुआ, केकड़ा, दीमक, बिच्छू इत्यादि।

स्वपोषी या आत्मपोषी इस वर्ग में ऐसे जन्तु उपस्थित होते हैं, जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। युग्लीना में आत्मपोषी होने के लक्षण पाए जाते हैं।

स्तनधारी ऐसे जन्तु जो बच्चा पैदा करते हैं तथा जिनके शरीर पर बाल पाए जाते हैं स्तनधारी कहलाते हैं। इन जन्तुओं में स्तनग्रंथियाँ भी पाई जाती हैं। इसके उदाहरण हैं-गाय, हिरन, चूहा, हाथी, चमगादड़ मनुष्य इत्यादि। वायुवीय जन्तु ऐसे जन्तु जो वायुमण्डल में विचरण करते हैं उनको वायवीय जन्तु कहते हैं। इसके प्रमुख उदाहरण है-पक्षी, ड्रैको इत्यादि।

पोषण स्तर के आधार पर जन्तुओं को तीन भागों में विभाजित किया जाता है।

1. शाकाहारी (Herbivorous) ये जन्तु केवल पौधों को खाते हैं। जैसे-घोड़े, ऊँट, गाय, भेड़ और बकरियाँ इनके दाँत चौड़े व सपाट होते हैं, जिससे वह अपने चारे को आसानी से चबा पाते हैं।

2. मांसाहारी (Carnivorous) ये जन्तु केवल जन्तुओं को खाते हैं। जैसे-शेर, चीता, भेड़िया और लोमड़ी इनके दाँत लम्बे व नुकीले होते हैं। ताकि वे अपने खाद्य पदार्थ को आसानी से काट व चीर सकें।

3. सर्वाहारी (Omnivorous) ये जन्तु पौधे और जन्तु दोनों को खाते हैं। इसमें प्रायः मनुष्य, कुत्ते और बिल्ली प्रमुख हैं। इनके दाँत चौड़े व सपाट तथा नुकीले व लम्बे दोनों प्रकार के होते हैं।

मच्छर के काटने से मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया जैसी घातक बीमारी होती है। घर के आस-पास जलजमाव और साफ-सफाई के अभाव में मच्छरों को पनपने के लिए जगह मिल जाती है। ऐसे में पानी को एकत्र न होने दें।

बारिश का मौसम आते ही मच्छरों का प्रकोप बढ़ जाता है। जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे- हैजा, निमोनिया, क्षयरोग, प्लेग इत्यादि ।


विद्यार्थी-केन्द्रित कक्षाएं विद्यार्थियों के सीखने के लिए सहायक वातावरण सुनिश्चित करती है। जिसमें सभी छात्रों में शिक्षक ऐसी सीखने की परिस्थिति उपलब्ध कराता है, जो विद्यार्थियों को अवसर देती हैं कि वे अवलोकन करें, खोज / अन्वेषण करें, प्रश्न करें, प्रयोग करे तथा विभिन्न प्रत्ययों की समझ विकसित करें।

विद्यार्थी-केंद्रित शिक्षा का है सीखने की प्रक्रिया की पारंपरिक शिक्षक-केंद्रित सम् को उलट देना और छात्रों को सीखने की प्रक्रिया को केंद रखना। शिक्षक केंद्रित कक्षा, शिक्षकों के ज्ञान के लिए प्राथमिक स्रोत है। दूसरी ओर, छात्र-केंद्रित कक्षाओं में, सक्रिय शिक्षण को दृढ़ता से प्रोत्साहित किया जाता है।

शिक्षक द्वारा छात्रों को खेल के अनुभव साझा करने को कहने से ज्यादा स्पष्ट कुछ मुद्दों की समझ का विकास होता है, जैसे कि लड़के व लड़कियों के लिए एक जैसे खेल, सभी के लिए समान अवसर तथा टीम भावना आदि। वह जानकारी, जो किसी कार्य को करने से हमारे मस्तिष्क में एकत्रित होती है व पुनः इसी प्रकार के कार्य को करते समय इसे सरलता से करने में हमारी सहायता करती है, अनुभव कहलाती है। इस प्रकार की प्रक्रिया से स्पष्ट बोध का विकास होता है।

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प्राथमिक कक्षाओं में ई.बी.एस. की समझ के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है—जीब-आधारित शिक्षण जाँच आधारित अधिगम एक अनुदेशात्मक दृष्टिकोण है, जहाँ छात्र एक जटिल प्रश्न, समस्या या चुनौती की जाँच करके सीखते हैं। यह विकास के लिए सक्रिय रूप से सीखने को बढ़ावा देता है तथा छात्रों में संलग्न, और उच्च क्रम सोच के लिए भी अनुमति देता है।

“जग एवं मग पद्धति”, कक्षाओं में पढ़ाने की पारंपरिक विधि है, क्योंकि यह एक पक्षीय प्रक्रिया है। EVS का मुख्य उद्देश्य जैसा कि NCF 2005 में बताया गया है, “छात्रों को वास्तविक जीवन के विश्व, प्राकृतिक और सामाजिक, जिसमें वे रहते हैं, को उजागर करना और उन्हें पर्यावरण से संबंधित समस्याओं और चिंताओं के बारे में विश्लेषण, मूल्यांकन और निष्कर्ष निकालने में सक्षम बनाना है।

ई.पी.एस. के शिक्षण में क्षेत्रीय भ्रमण महत्वपूर्ण है। इसका एक अच्छा उदाहरण पूर्व योजना तथा प्रतिपुष्टि क्रिया कलाप के साथ स्कूल के नजदीक किसी स्थान पर जाना है। किसी उद्देश्य को लेकर स्थान विशेष की यात्रा ही क्षेत्रीय भ्रमण है। शिक्षा के क्षेत्र में यह उद्देश्य सम्बन्धित विषय का प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान करना है। इस विधि को शैक्षिक पर्यटन, शैक्षिक भ्रमण, क्षेत्राटन सरस्वती यात्रा आदि नामों से भी जाना जाता है।

एक ई.वी.एस. की कक्षा को खुशगवार कक्षा होनी चाहिए। इसमें अवलोकन, अन्वेषण, प्रश्न पूछना एवं क्रियाकलाप करना शामिल होनी चाहिए।

अवलोकन- अध्ययन की वह विधि है, जिसमें अध्ययन द्वारा विषय एवं घटना का अति सूक्ष्म तथा गहन अध्ययन किया जाता है। इसमें घटनाओं की वास्तविक प्रकृति, उनकी गम्भीरता, विस्तार एवं परस्पर सम्बन्धों का सूक्ष्म अवलोकन करके ही वास्तविक तथ्यों का संकलन किया जाता है।

अन्वेषण का अर्थ है खोजना और ढूंढ़ना। अन्वेषण पुरातत्व विभाग का ही भाग है। अन्वेषण करने में ऐसी अज्ञात अथवा दूर की बातों, वस्तुओं, स्थानों आदि व पता लगाया जाता है, जो अब तक सामने न आयी हो।
बच्चों में विश्लेष ात्मक विचार विकसित करने के लिए वंश वृक्ष एक उपयोगी उपकरण है, जो बच्चों में अनेक पीढ़ियों से परिवार के सदस्यों के आपसी संबंधों के बारे में जानकारी विकसित करता है।

विश्लेषण विधि एक शिक्षण विधि है, जिसमें किसी समस्या को पहले छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया जाता है। उसके बाद समस्या के बारे में अध्ययन किया जाता है। फिर उसके निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है। वह शिक्षण विधि जिसमें ज्ञात से अज्ञात की ओर जाते हैं। अर्थात पहले से ज्ञात तथ्य एवं सूत्रों की सहायता से नए तथ्यों या समस्याओं को हल करने की शिक्षण विधि को संश्लेषण विधि कहते हैं।
ई.वी.एस. में आकलन का संकेतन चर्चा करना होता है।

आकलन- यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा बालकों के प्रगति स्तर का पता लगाया जाता है।. मूल्यांकन अधिगम को सरल एवं सुगम बनाने की कार्य करता आकलन से यह पता लग जाता है, कि बालक कहाँ पर समझता है तथा कोई ऐसा भी तथ्य होता है, जो बालक समझने में असमर्थ होता है। यह बात आकलन के द्वारा ही पता चल पाता है। आकलन और मूल्यांकन दोनों का उद्देश्य बच्चों की अभिव्यक्ति, क्षमता, अनुभूति, आदि का मापन करना है।

आकलन एक संक्षिप्त प्रक्रिया है और मूल्यांकन एक व्यापक प्रक्रिया है।


कक्षा III के विषय ‘मानचित्रण’ के सबसे उपयुक्त क्रिया कलाप उनसे उनके घर से स्कूल का रास्ता अंकित करने को कहना होता है। मानचित्रण- भूगोल में वस्तुस्थिति के वितरण का विशेष अध्ययन होता है, इसलिए मानचित्र को अधिकाधिक महत्त्व प्रदान किया जाता है। भूगोल का अध्ययन और अध्यापन दोनों मानचित्र के बिना अधूरे तथा असंभव है। मानचित्र द्वारा विभिन्न तथ्यों की स्थिति, विस्तार अथवा वितरण एवं पारस्परिक स्थैतिक संबंधों का समुचित एवं सहज ज्ञान हो जाता है।

मानचित्र की तीन घटक है- दूरी
(B) दिशा एवं अनुभव देना चाहिए। –
(C) प्रतीक
(C) विद्यार्थियों को ‘पशु’ थीम पढ़ाने का सबसे उपयुक्त युक्ति विद्यार्थियों को चिड़ियाघर के भ्रमण पर ले जाकर प्रत्यक्ष

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