Bhasha Adhigam and Bhasha Arjan : CTET के महत्वपूर्ण विषयों में भाषा अधिगम और भाषा अर्जन महत्वपूर्ण है इस विषय में आप बच्चो की ज्ञान अर्जन और सिखने की कला का अवलोकन करते है | सीटेट के Paper 1,Paper2 में भाषा अधिगम और भाषा अर्जन से बहुत सारे प्रश्न पूछे जाते है | इस प्रक्रियाओ द्वारा हम व्यक्तियों के सम्पर्क में रहकर भाषा को सीखते है। भाषा अधिगम और भाषा अर्जन में अंतर बच्चो के सिखने की विभिन्न कला से परिचय कराती है |
आज आप इस टॉपिक में Learning & Acquisition के तथ्यों के बारे में जान पाएंगे | इस पोस्ट से हम भाषा को सीखना बच्चो में परिवार से सिखने की विभिन्न परिवेशो की चर्चा करेंगे | इस विषय से आपके परीक्षाओ में 2 से 3 प्रश्न पूछे जाते है यह CTET का महत्वपूर्ण विषय है | आज आप इस पोस्ट में भाषा अधिगम तथा भाषा अर्जन और भाषा अधिगम तथा में अंतर की जानकारी प्राप्त करेंगे |
![Bhasha Adhigam & Bhasha Arjan](https://teacherexamnotes.com/wp-content/uploads/2023/06/bhasha-adhigam-aur-arjan-ctet-min-1024x593.jpg)
भाषा क्या है ?
हम अपने विचारों को व्यक्त करने के लिये हम वाचिक ध्वनियों का उपयोग करते हैं जिसे भाषा कहते है | भाषा मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का समूह है |
भाषा मुख से उच्चारित होने वाली वह ध्वनि है जिसका प्रयोग मनुष्य अपने मन के विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए करते है |
- भाषा नियमबद्ध व्यवस्था है | भाषा एक नियम संचालित व्यवस्था है। भाषा अर्जित संपत्ति एवं सामाजिक वस्तु है।
- भाषा अनुकरणीय एवं परिवर्तनशील होती है।
- भाषाऍं एक – दूसरे के सात्रिध्य में फलती – फूलती है।
- भाषा संज्ञानात्मक लचीलेपन एवं सामाजिक सहिष्णुता को भी जन्म देती है।
- भाषा का जितना अधिक प्रयोग किया जाएगा, उतना ही भाषा पर पकड़ मजबूत होती है।
यह बच्चों में दक्षता के साथ सहज अभिव्यक्ति के विकास को सुनिश्चित करता है।
भाषा एक औजार है जिसका उपयोग जिंदगी के अनुभवों को साझा करने के लिए प्रतीकों की वाचिक व्यवस्था के रूप में किया जाता है।
भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है। उदाहरण के लिए पंजाबी गुरूमुखी तथा शाहमुखी दोनो में लिखी जाती है जबकि हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली इत्यादि सभी देवनागरी में लिखी जाती है |
दो तरह से भाषा सीखी जा सकती है- भाषा अर्जन और भाषा अधिगम
भाषा अधिगम (Language Learning)
अधिगम शब्द दो शब्द के मेल से बना है ‘अधि’ तथा ‘गम’ | यहाँ ‘अधि’ का अर्थ है ‘भली प्रकार’ तथा ‘गम’ का अर्थ है ‘जानना’। अधिगम (Learning) का मतलब सीखना है | अधिगम की प्रक्रिया जीवनभर चलती रहती है। किसी बात या विषय के समीप अच्छी तरह जाना और उसकी भली भांति जानकारी प्राप्त करना अधिगम है |
सीखने की प्रक्रिया व्यक्ति की शक्ति और रुचि के कारण विकसित होती है| बच्चों में स्वयं अनुभूति द्वारा भी सीखने की प्रक्रिया होती है, जैसे-बालक किसी जलती वस्तु को छूने का प्रयास करता है और छूने के बाद की अनुभूति से वह यह निष्कर्ष निकालता है कि जलती हुई वस्तु को छूना नहीं चाहिए। अधिगम की यह प्रक्रिया सदैव एक समान नही रहती है। इसमें प्ररेणा के द्वारा वृद्धि एवं प्रभावित करने वाले कारकों से इसकी गति धीमी पड़ जाती है।
विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के अनुसार भाषा-अधिगम
- पॉवलाव और स्किनर के अनुसार- भाषा की क्षमता का विकास कुछ शर्तों के अंतर्गत होता है, जिसमें अभ्यास, नकल, रटने जैसी प्रक्रिया शामिल होती है।
- चॉम्स्की के अनुसार- बालकों में भाषा सीखने की क्षमता जन्मजात होती है तथा भाषा मानव मस्तिष्क में पहले से विद्यमान होती है।
- पियाज़े के अनुसार- भाषा परिवेश के साथ अंत:क्रिया द्वारा विकसित होती है।
- वाइगोत्सकी के अनुसार– भाषा-अधिगम में बालक का सामाजिक परिवेश एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बच्चे की भाषा समाज के संपर्क में आने तथा बातचीत करने के कारण होती है।
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भाषा अर्जन (Language acquisition)
इसमें हम अपने आस पास के वातावरण, माता पिता और अपने से बड़ो व्यक्तियों के सम्पर्क में रहकर भाषा को सीखते है। इसके द्वारा बालक भाषा को ग्रहण करने व समझने की क्षमता अर्जित करता है।भाषा अर्जन बच्चो की प्रथम क्रिया होती है जहाँ बालक शब्दों एवं वाक्य प्रयोग के साथ ही भाषा को ग्रहण करने की क्षमता अर्जित करते है |
भाषा-अर्जन एक अवचेतन प्रक्रिया है, सभी बच्चों में भाषा-अर्जन की स्वभाविक क्षमता होती है। भाषा-अर्जन एक स्वभाविक प्रक्रिया है, भाषा-अर्जन बालक बिना विद्यालय जाये भी कर लेता है। भाषा-अर्जन एक अवचेतन प्रक्रिया है, सभी बच्चों में भाषा-अर्जन की स्वभाविक क्षमता होती है। भाषा-अर्जन एक स्वभाविक प्रक्रिया है, भाषा-अर्जन बालक बिना विद्यालय जाये भी कर लेता है।
- इसमें बालक के सीखने की प्रक्रिया व्याकरणीय नियमों से पूर्णतः अनभिज्ञ रहती है।
- बालक वातावरण और लोगों के बीच अन्तःक्रिया से भाषा अर्जित करता है।
- भाषा अर्जन की विधियाँ :-
- अनुकरण द्वारा बालक जब भी भाषा के नए नियम या व्याकरण के नियम सुनता है, वह उसे बिना अर्थ
जाने दोहराता है। इसके द्वारा वह इन नियमों को आत्मसात कर अपने भाषा प्रयोग में लाने लगता है। - अभ्यास से भाषा के नए नियमों और रूपों का विद्यार्थी बार-बार अभ्यास करते हैं, जिससे नियम उनके भाषा प्रयोग में शामिल हो जाते हैं।
- पुनरावृत्ति में बालक भाषा के जिन नियमों या रूपों को बार-बार सुनता है, वही नियम उसे याद हो जाते हैं और वह उसे अपने व्यवहार में लाने लगता है।
- अनुकरण द्वारा बालक जब भी भाषा के नए नियम या व्याकरण के नियम सुनता है, वह उसे बिना अर्थ
चॉम्स्की के अनुसार भाषा अर्जन की क्षमता बालकों में जन्मजात होती है और वह भाषा की व्यवस्था को पहचानने की शक्ति के साथ पैदा होता है।
भाषा अधिगम और भाषा अर्जन में अंतर
भाषा अधिगम | भाषा अर्जन |
अधिगम शब्द दो शब्द के मेल से बना है ‘अधि’ तथा ‘गम’। यहाँ ‘अधि’ का अर्थ है ‘भली प्रकार’ तथा ‘गम’ का अर्थ है ‘जानना’। | भाषा अर्जन में बालक सुनकर, बोलकर, भाषा ग्रहण करता है तथा निरंतर परिमार्जन करता रहता है। |
किसी बात या विषय के समीप अच्छी तरह जाना और उसकी भली भांति जानकारी प्राप्त करना। | भाषा सीखने की प्रक्रिया में भाषा अर्जन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है। |
यह मुख्य रूप से औपचारिक शिक्षण होता है। | अर्जन में सामान्यतः अनुकरण की प्रवत्ति दिखाई देती है। |
भाषा अधिगम के लिए जागरूक प्रयास करने पड़ते हैं। | भाषा अर्जन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और यह अवचेतन रूप में होता है |
भाषा व्याकरणीय नियमों द्वारा सीखायी जाती है। यह द्वितीय भाषा शिक्षण से सम्बन्धित होती है। इसे सीखने के लिए औपचारिक संस्थान (विद्यालय) की आवश्यकता होती है। | भाषा अर्जन आस पास के वातावरण,आस पास के लोगो के माध्यम से ही सिख जाते है। |
भाषा अधिगम के द्वारा हम पढ़ना लिखना सीखते है। | भाषा अर्जन के द्वारा हम बोलना व समझना सिख जाते है |
भाषा अधिगम में किताब और व्याकरण की जरूरत पड़ती हैं। | भाषा अर्जन में किताब और व्याकरण की जरूरत नही पड़ती। |